सामग्री सूची
- डेरिवेटिव क्या है?
- डेरिवेटिव के प्रकार
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग क्या है?
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे काम करती है
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग के गुण और दोष
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग की स्ट्रेटजियां
- निष्कर्ष
- ATFX से डेरिवेटिव बाजार में कैसे ट्रेड करें
डेरिवेटिव क्या है?
डेरिवेटिव ऐसा वित्तीय करार है, जिसमें मूल्य निर्धारण निहित एसेट के अनुरूप होता है। यह एसेट स्टॉक, बांड, कमोडिटीज, करेंसियां, ब्याज दरें या इंडीसीज कुछ भी हो सकते हैं, जिनका मूल्य बदलता रहता है, अक्सर वित्तीय जोखिम रोकने या कम करने, भविष्य के एसेट मूल्य बदलावों पर ट्रेड लगाने और लीवरेज में वृद्धि के लिए डेरिवेटिव उपयोग किए जाते हैं।
डेरिवेटिव का उपयोग संस्थागत और निजी, दोनों निवेशक नियमित रूप से करते हैं। उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेशन कच्चे माल की लागत में उतार-चढ़ाव से बचाव के लिए फ्यूचर्स उपयोग कर सकते हैं। ऐसी एयरलाइन का सोचें, जो काफी हद तक जेट ईंधन पर निर्भर हो; ईंधन के बढ़ते मूल्यों से इसकी आय में कमी हो सकती है। इस जोखिम से बचाव के लिए, एयरलाइन ईंधन डेरिवेटिव करार कर सकती है, जिसमें विशिष्ट ईंधन मूल्य की गारंटी हो, जिससे वह परिचालन की लागत स्थिर रख सके।
डेरिवेटिव के प्रकार
डेरिवेटिव बाजार अनेक तरह के अनुबंध ऑफर करते हैं, जिनमें प्रत्येक में भिन्न उपयोगों के लिए अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। डेरिवेटिव के मुख्य वर्गों का पूर्ण विश्लेषण इस प्रकार है:
फ्यूचर्स: फ्यूचर्स किसी एसेट को भविष्य की तिथि पर विशिष्ट मूल्य पर खरीदने या बेचने के मानकीकृत अनुबंध हैं। इन अनुबंधों को कठोरता से रेगुलेट करते हुए शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (CME) जैसे बाजारों में ट्रेड किया जाता है। उदाहरण के लिए, गेहूं का किसान भविष्य के मूल्यों में गिरावट से बचाव हेतु आगामी फसल के अनुकूल बिक्री मूल्य को लॉक करने के लिए फ्यूचर्स अनुबंध का उपयोग कर सकता है।
ऑप्शंस: ऑप्शंस समाप्ति से पूर्व कोई एसेट निश्चित मूल्य पर खरीदने (कॉल ऑप्शन) या बेचने (पुट ऑप्शन) का ऑप्शंस धारक को अधिकार (किंतु कर्तव्य नहीं) देते हैं। हानि रोकने और ट्रेडिंग, दोनों उद्देश्यों से इनका उपयोग किया जा सकता है। निवेशक को शेयर के मूल्य में वृद्धि का अनुमान होने पर, वे शेयर खरीदे बिना लाभ के लिए कॉल ऑप्शन खरीद सकते हैं।
स्वैप: वित्तीय एसेटों या देनदारियों के आदान-प्रदान को सक्षम बनाने वाले एग्रीमेंट स्वैप हैं। ब्याज दर स्वैप इनका सर्वाधिक सामान्य प्रकार है, जिसमें परिवर्ती भुगतानों के लिए ब्याज के नियत भुगतानों का आदान-प्रदान करने वाली पार्टियां होती हैं। उदाहरण के लिए, परिवर्ती-दर ऋण वाली कोई कंपनी ब्याज की नियत दरों का भुगतान करने के लिए स्वैप एग्रीमेंट कर सकती है, जिससे ब्याज की बढ़ती दरों के प्रति उसका जोखिम कम हो जाता है।
फॉरवर्ड्स: फ्यूचर्स की तरह फॉरवर्ड अनुबंध, बाद की तिथि को नियत मूल्य पर वस्तु खरीदने या बेचने के एग्रीमेंट हैं। किंतु, वे अधिक लचीले होते हैं और इनका कारोबार ओवर-द-काउंटर (OTC) किया जाता है। मनपसंद करने में ये अनुबंध लचीलापन होता है, जिससे इनमें शामिल पक्षों को शर्तें एडस्ट करने में आसानी होती है। किंतु, इससे प्रतिपक्ष जोखिम बढ़ता है, क्योंकि उन्हें स्टैंडर्ड एक्सचेंजों में ट्रेड नहीं किया जाता।
अंतर का अनुबंध (CFD)
CFD ऐसे डेरिवेटिव प्रोडक्ट हैं, जो अंतर्निहित एसेट के स्वामित्व के बिना फॉरेक्स, स्टॉक, कमोडिटी (ऑयल, गोल्ड), अथवा इंडीसीज जैसी एसेटों के मूल्य में उतार-चढ़ाव पर ट्रेडरों को ट्रेड लगाने का अवसर देते हैं। लांग (खरीद) या शॉर्ट (बिक्री) पोजीशन बनाकर ट्रेडर चढ़ते और उतरते, दोनों बाजारों से फायदा कमा सकते हैं।
● लीवरेज: CFD में अक्सर लीवरेज होता है, जिससे ट्रेडरों को कम पूंजीगत लागत से बड़ी पोजीशन पर कंट्रोल करने का अवसर मिलता है। एक ओर यह संभावित लाभ, दूसरी ओर बड़े नुकसान का जोखिम भी बढ़ता है।
● फ्लेक्सिबिलिटी: CFD से अनेक बाजारों में एक्सेस मिलती है और इनका ट्रेड ओवर दि काउंटर किया जाता है, जिससे ट्रेडिंग में अधिक लचीलापन आता है।
CFD उन ट्रेडरों में लोकप्रिय हैं, जिन्हें अल्पकालिक अवसरों की तलाश है और जो अपने मौजूदा पोर्टफोलियो हेज करना चाहते हैं।
डेरिवेटिव का हर प्रकार वित्तीय जोखिम मैनेज करने की अनूठी स्ट्रेटजियां उपलब्ध कराता है, जिससे मूल्य में उतार-चढ़ाव से फायदा लेने और निवेश के नए अवसरों का पता लगाने में ट्रेडरों को मदद मिलती है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग क्या है?
अंतर्निहित एसेटों में अनुमानित मूल्य के उतार-चढ़ावों से जोखिम कम करने या मुनाफा कमाने के लिए डेरिवेटिव अनुबंधों की खरीद और बिक्री डेरिवेटिव ट्रेडिंग है। स्टॉक और बांड जैसी एसेटों में सीधे निवेश के विपरीत, डेरिवेटिव ट्रेडरों को अंतर्निहित एसेट के बिना मूल्य में उतार-चढ़ाव से लाभ के अवसर देते हैं।
उदाहरण के लिए, मूल्य वृद्धि की से, क्रूड ऑयल मूल्यों पर बाजी लगाने वाला डेरिवेटिव ट्रेडर ऑयल फ्यूचर्स खरीद सकता है। ऑयल मूल्यों में वृद्धि होने पर, ट्रेडर लाभ से फ्यूचर कांट्रैक्ट बेच सकता है। अपने खर्चों पर कंट्रोल या मुनाफे के लिए बिजनेस फ्यूचर उपयोग करते हैं, जिससे उनकी कमाई नुकसान में जा सकती है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे काम करती है
डेरिवेटिव और ट्रेडर के लक्ष्य अलग-अलग होने के कारण डेरिवेटिव ट्रेडिंग जटिल हो सकती है। डेरिवेटिव ट्रेडिंग के काम करने के तरीके की व्यापक रूपरेखा नीचे प्रस्तुत है :
कांट्रैक्ट क्रिएशन: डेरिवेटिव अनुबंध बनाना या प्राप्त करना पहला प्रयास है। ट्रेडिंग अकाउंट वाले प्रत्येक व्यक्ति को सुलभ, एक्सचेंज-ट्रेडेड डेरिवेटिव, जैसे फ्यूचर्स और ऑप्शंस, में अनुबंध की स्टैंडर्ड शर्तें होती हैं। ओवर-द-काउंटर (OTC) डेरिवेटिवों, जैसे स्वैप और फॉरवर्ड, का ट्रेड निजी तौर पर किया जाता है, जिनकी शर्तें अलग-अलग होती हैं।
लीवरेज और मार्जिन: ट्रेडर सामान्यत: मार्जिन पर डेरिवेटिव ट्रेड करते हैं, जिसका अर्थ है उन्हें ट्रांजेक्शन शुरू करने के लिए अनुबंध के कुल मूल्य का एक अंश दर्ज करना होता है। इस लीवरेज में छोटे शुरुआती निवेश से बड़े एसेट निवेश की गुंजाइश रहती है, जिससे अपेक्षाकृत अधिक बड़े नुकसान की संभावना बढ़ जाती है।
अस्थिर मूल्य: डेरिवेटिव अनुबंध का मूल्य अंतर्निहित एसेट के मूल्य के अनुरूप ऊपर-नीचे होता है। उदाहरण के लिए, अंतर्निहित स्टॉक मूल्य में बदलाव होने पर CFD स्टॉक का मूल्य ऊपर-नीचे होता है।
निपटान: अनेक डेरिवेटिव, विशेषकर फ्यूचर्स कांट्रैक्ट्स, का निपटान (बंद हुए) उनकी समापन अवधि से पहले किया जा सकता है। समापन पर विशिष्ट अनुबंधों के लिए अंतर्निहित अदद की भौतिक डिलीवरी की, जबकि अन्य के लिए बाजार के मौजूदा मूल्य के आधार पर नकद निपटान की जरूरत होती है।
फायदों में वृद्धि क्षमता और उनकी अनुकूलनशीलता से डेरिवेटिव को उनकी क्षमता मिलती है, किंतु विशेषरूप से बाजार के ट्रेडर के अनुमानों के विपरीत होने पर वे बड़े जोखिम भी उठाते हैं।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग के गुण और दोष
गुण
जोखिम मैनेजमेंट और हेजिंग ऑप्शंस
डेरिवेटिव जोखिम मैनेजमेंट के प्रभावी इंस्ट्रूमेंट हैं, जो निवेशकों को अंतर्निहित एसेटों में मूल्य के प्रतिकूल उतार-चढ़ावों से बचाव के मौके देते हैं। उदाहरण के लिए, फॉरेक्स जोखिम से जूझ रहा कॉर्पोरेशन अनुकूल विनिमय दर बंद करने के लिए करेंसी फ्यूचर्स उपयोग कर सकता है, जिससे फ्यूचर करेंसी में उतार-चढ़ावों के वित्तीय प्रभाव में कमी आती है।
लीवरेज से फायदों में तेजी
डेरिवेटिव पर लीवरेज के उपयोग से ट्रेडर मामूली निवेश कर बड़े होल्डिंग्स पर कंट्रोल कर सकते हैं। इससे कंपनियों को छोटे आरंभिक निवेश से अधिक बड़े लाभ पाने में मदद मिलती है, जिससे उन्हें पर्याप्त अग्रिम नकदी की जरूरत के बिना बाजार के उतार-चढ़ावों से लाभ लेने का मौका मिलता है।
बाजार एक्सेस और विविधीकरण
विभिन्न बाजारों, जैसे कमोडिटीज, करेंसियां, ब्याज दर और इक्विटी इंडीसीज में एक्सेस करने में डेरिवेटिव मदद करते हैं, जिससे पारंपरिक स्टॉक और बॉन्ड के अलावा विविधीकरण की गुंजाइश बनती है। ट्रेडरों को एसेट के विभिन्न वर्गों से जोड़कर यह विविधीकरण निवेश जोखिम कम करता है, जिनमें प्रत्येक की आर्थिक स्थितियों पर अलग-अलग प्रतिक्रिया हो सकती है।
बाजार की संवर्धित दक्षता
मूल्य निर्धारण के लिए डेरिवेटिव बाजार महत्वपूर्ण है, क्योंकि डेरिवेटिव के मूल्य अक्सर अंतर्निहित एसेटों के भविष्य के अनुमानित मूल्यों का संकेत देते हैं। उदाहरण के लिए, स्टॉक ऑप्शंस किसी स्टॉक की संभावित अस्थिरता पर बाजार के आर्थिक दृष्टिकोण सामने लाते हैं, जिससे निवेशकों को अधिक व्यापक ऑप्शंस बनाने में मदद मिलती है।
ऑप्शन प्रीमियम से आय का सृजन
सैलिंग ऑप्शंस से निवेशक आय सृजित कर सकते हैं, जिससे उनके लाभ में वृद्धि और समग्र पोर्टफोलियो के कामकाज में सुधार हो सकता है। आय का यह सृजन अपेक्षाकृत स्थिर बाजारों के लिए उपयोगी है, जहां ऑप्शंस के प्रयोग की संभावना कम होती है, जिससे कैश फ्लो स्थिर बना रहता है।
दोष
लीवरेज के चलते उच्च जोखिम
हालांकि लीवरेज से आपकी आय बढ़ सकती है, किंतु इससे हानि की संभावना भी काफी हद तक बढ़ती है, ऐसे में विशेष कौशल न रखने वालों के लिए डेरिवेटिव जोखिम भरा हो जाता है। लीवरेज्ड पोजिशन के मूल्य में मामूली नकारात्मक उतार-चढ़ाव के चलते भारी वित्तीय नुकसान हो सकता है और संभव है कि यह नुकसान आरंभिक निवेश से अधिक हो।
जटिलता और जानकारी की अपेक्षाएं
डेरिवेटिव जटिल वित्तीय इंस्ट्रूमेंट हैं जिनके लिए अंतर्निहित एसेटों, अनुबंध की शर्तों और बाजार परिस्थितियों की व्यापक जानकारी चाहिए। इसके अतिरिक्त, ऑप्शंस के “ग्रीक” (जो बाजार के उतार-चढ़ावों के प्रति मूल्य प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करते हैं) जैसी अवधारणाओं के चलते यह जटिलता और भी बढ़ती है, जिसे अनुभवहीन ट्रेडरों के लिए समझना कठिन हो सकता है।
OTC डेरिवेटिव में काउंटरपार्टी जोखिम
ओवर-द-काउंटर (OTC) डेरिवेटिव के सौदे निजी तौर पर किए जाते हैं, यदि काउंटरपार्टी अनुबंध से जुड़े अपने दायित्व पूरे न कर पाए तो ट्रेडर जोखिम में आ जाते है। जोखिम कम करने के लिए बिचौलियों का उपयोग करने वाले एक्सचेंज-ट्रेडेड डेरिवेटिव के विपरीत, OTC डेरिवेटिव हर भागीदार की ऋण चुकाने की क्षमता पर निर्भर करते हैं, जिससे जोखिम और बढ़ जाता है।
बाजार की अस्थिरता के प्रति संवेदनशीलता
अंतर्निहित एसेट के मूल्यों में बदलाव से डेरिवेटिव के मूल्यों में तेज़ी से बदलाव होते हैं, जिससे बाजार के उतार-चढ़ाव के प्रति उनकी संवेदनशीलता बहुत बढ़ती है। इस संवेदनशीलता से पता चलता है कि सट्टा के उद्देश्यों से डेरिवेटिव ट्रेडिंग करने से विशेष रूप से कमोडिटी और करेंसियों जैसी अस्थिर एसेटों में बड़ा लाभ या हानि त्वरित हो सकती है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग की स्ट्रेटजियां
डेरिवेटिव ट्रेडिंग में ट्रेडर अपनी आय में वृद्धि या अपने जोखिम में कमी के अनेक तरीके अपनाते हैं। चार प्रचलित स्ट्रेटजियां इस प्रकार हैं :
हेजिंग: प्राथमिक निवेश में संभावित हानि कम करने के लिए हेजिंग में डेरिवेटिव का उपयोग पर बल देता है।
उदाहरण के लिए, गोल्ड मूल्यों में मौसमी तेजी की आशा करने वाला बड़ा आभूषण निर्माता पहले ही CFD पर गोल्ड की खरीद कर सकता है। बाजार में उछाल आने पर, CFD ट्रेड से होने वाले लाभ से फिजिकल गोल्ड खरीदते समय किसी अतिरिक्त खर्च की भरपाई करने में सहायता मिल सकती है।
ट्रेडिंग: ट्रेडिंग की स्ट्रेटजियों से एसेट के मूल्यों में उतार-चढ़ाव का सही पूर्वानुमान लगाने और डेरिवेटिव ट्रेड करने में मदद मिलती है।
उदाहरण के लिए, हेज फंड आर्थिक अनिश्चितता के संकेतों पर ध्यान देते हुए अनुमान लगाता है कि निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए गोल्ड अपनाएंगे। इस संभावना से लाभ के लिए, फंड में गोल्ड पर CFD के अनेक लांग पोजिशन ओपन किए जाते हैं, जिनका लक्ष्य बाजार भाव के कारण मूल्यों में वृद्धि पर मुनाफा कमाना होता है।
आर्बिट्रेज : इस ट्रेडिंग से एक बाजार में डेरिवेटिव खरीदकर उसे किसी दूसरे बाजार में बेचकर संबद्ध एसेटों या बाजारों के मूल्यों में अंतर से मुनाफा कमाने का प्रयास होता है।
उदाहरण के लिए, किसी देश के बाजार में निवेश खरीदकर ट्रेडर उसे दूसरे देश में ऊंचे मूल्य पर बेचकर इस अंतर से मुनाफा कमा सकते हैं।
पेयर्स ट्रेडिंग: कामकाज में अंतरों से मुनाफा कमाने के लिए निवेशक एक दूसरे से घनिष्ठता से जुड़ी दो एसेटों में अपोजिट पोजिशनें बनाए रख सकते हैं।
उदाहरण के लिए, ट्रेडर किसी एयरलाइन का स्टॉक बेचकर, इस आशा से ऑयल कंपनी में लॉंग कर सकता है कि ऑयल के मूल्यों में बदलाव का दोनों कंपनियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा।
हर पद्धति के लिए जोखिम मैनेजमेंट की विशिष्ट पद्धति अपेक्षित होती है, और डेरिवेटिव बाजार में सफलतापूर्वक आगे बढ़ने के लिए इन स्ट्रेटजियों को जानना जरूरी है।
निष्कर्ष
डेरिवेटिव ट्रेडिंग जोखिम का कारगर कंट्रोल करती है, बाजार में जोखिम आसान बनाकर लाभ में वृद्धि करती है। जहां कॉर्पोरेशन और संस्थान डेरिवेटिव का व्यापक उपयोग करते हैं, वहीं बेहतर स्ट्रेटजियां तलाशने वाले निजी ट्रेडर भी इनका सहारा लेते हैं। किंतु, डेरिवेटिव ट्रेडिंग में निवेश के गंभीर जोखिम होते हैं, जिनमें सबसे बड़ा है भारी हानियां होना। डेरिवेटिव ट्रेडिंग शुरू करने वाले नए लोगों को पहले जानकारी हासिल करनी चाहिए और अपने ट्रेडिंग प्रयासों में सफलता और सुरक्षा, दोनों के लिए अपनी विधियां सावधानी से तैयार करनी चाहिए।
ATFX से डेरिवेटिव बाजार में कैसे ट्रेड करें
ATFX ऐसा ग्लोबल ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है, जो अंतर के अनुबंध (CFDs) सहित डेरिवेटिव ट्रेडिंग के विविध ऑप्शन उपलब्ध करवाता है। ATFX की मदद से डेरिवेटिव कैसे ट्रेड करें, यह इसका चरणबद्ध निर्देश है।
अकाउंट बनाएं: ATFX में अकाउंट बनाकर शुरू करना ऐसी सरल प्रक्रिया है, जिसमें आपको कुछ निजी और वित्तीय जानकारी देनी होती है।
अपने अकाउंट में फंड डालें: अपने ट्रेडिंग अकाउंट में पैसे डिपॅजिट करने के लिए, अनेक भुगतान विधियों में से एक चुनें। ATFX में डिपॉजिट की न्यूनतम अपेक्षा है, इस प्रकार यह विभिन्न कैश लेवल के ट्रेडरों की एक्सेस सुगम बनाता है।
अपना डेरिवेटिव चुनें: स्टॉक, कमोडिटी, इंडेक्स और फ़ॉरेक्स सहित एसेट के विभिन्न प्रकार के वर्गों पर ATFX में CFD उपलब्ध है। यूजरों को उपयुक्त डेरिवेटिव चुनने में मदद के लिए यह बाजार की व्यापक जानकारी और विश्लेषणात्मक टूल मुहैया कराता है।
बाज़ार का विश्लेषण करें: एसेट के कामकाज का विश्लेषण करने में ट्रेडरों की मदद के लिए ATFX में रिसर्च टूल और तकनीकी इंडीकेटर उपलब्ध हैं। बाज़ार की हर स्थिति में अपने ट्रेडिंग ऑप्शंस को सही दिशा के लिए इन इंस्ट्रूमेंटों का लाभ उठाएं।
अपना ट्रेड करें: विश्लेषण के बाद पोजिशन साईज तय करें, जिस पर आपको ट्रेड करना हो और अपना जोखिम एक्सपोजर कंट्रोल करने के लिए आप स्टॉप-लॉस और टेक-प्रॉफिट निर्धारित कर सकते हैं।
मॉनिटर और एडजस्ट करें: ATFX के सहज प्लेटफॉर्म पर बाजार की स्थितियों में बदलाव को ध्यान में रखते हुए जरूरत अनुसार अपनी पोजीशनें एडजस्ट कर, उनका लगातार आकलन करते रहें।
क्लोज पोजीशन: मुनाफा कमाने या घाटा सीमित करने के लिए अपना ट्रेड आप कभी भी बंद कर सकते हैं। कैश सेट्लमेंट समेत ट्रेड सेट्लमेंट के लिए ATFX सही और प्रभावी ऑप्शन प्रदान करता है।
उन्नत विशेषताओं सहित ATFX में ईज ऑफ एक्सेस है, जो इसे प्रोफेशनल टूलों और प्रभावशाली प्लेटफॉर्म की सपोर्ट से डेरिवेटिव बाजार में ट्रेडिंग शुरू करने के इच्छुक ट्रेडरों का श्रेष्ठ माध्यम है।